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रोटियों का पेड़

  • Writer: Arti Shrivastava
    Arti Shrivastava
  • Nov 14, 2021
  • 3 min read

बच्चे के जन्म के साथ माँ का भी नया जन्म होता है। वह अपने अंश को गोद में पाकर अपना सारा दुख -दर्द भूल जाती है।


मेरे दो बच्चे भी ईश्वर द्वारा प्रदत्त इस दुनिया के सबसे अनमोल और खूबसूरत तोहफ़े हैं।


आइये मैं मिलवाती हूँ अपने ज़िगर के टुकड़ों से। मेरी पहली संतान मेरी नन्ही परी मेरी बिटिया हनी है। इसे मैं प्यार से हनु भी कहती हूँ। माँ की हनु मतलब माँ की ठुद्धि। जिसके बिना मैं नगण्य हूँ।


बचपन से इतनी बातूनी की कोई उसके प्यार के वार से बच नहीं सकता। जब थोड़ी सी बड़ी हुई अपनी बातों से सबका मन मोह लेती। सुन्दर साफ़ स्पष्ट आवाज़। सामने वाले को देख कर उसकी उम्र के अनुसार अपनी रिश्तों का ताना -बाना पिरो लेती।


कोई नानी तो कोई दादी तो कोई मौसी, और बुआ और मामा, चाचा, भैया -दीदी सब रिश्तों का रसायन उसके इर्द गिर्द हीं घूमा करते थे।



पर मुझे तो सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता जैसा बच्चा चाहिए था  जो मुझसे तोतली जुबान से कहता "माँ काओ!"


खैर! कुछ वर्ष पश्चात् बेटे चीकू की किलकारीयों से मेरी गोद फिर से आबाद हुई। हाँ जब मेरे बेटे ने थोड़ा -थोड़ा बोलना शुरू किया। मेरी अधूरी इच्छाएं फिर से जाग्रत हुई। जब पहली बार उसने अपनी तोतली आवाज़ में माँ, कहकर पुकारा, मैं तो बिल्कुल बच्ची बन गई।





दिन -रात बस उसके साथ तोतली आवाज़ में बातें किया करती। उसकी तुतलाहट से कहीं ज़्यादा मैं हीं तोतलाती। परिणाम स्वरुप वह इतना ज़्यादा तुतलाने लगा कि कितनी बार उसकी बातें मुझे भी समझ नहीं आतीं। फिर भी मैं बहुत ख़ुश थी।


मेरा चीकू अब स्कूल जाने लगा था। अब टीचर्स की शिकायतें आने लगीं, "आपके बच्चे की बातें समझ नहीं आतीं। उसे साफ़ बोलने की आप लोग अभ्यास कराएं।"


उसके दोस्त भी उसे चिढ़ाने लगे। इस कारण से वह बाहर वालों के सामने बिल्कुल चुप सा रहने लगा। हम सब अपने नन्हें चीकू को चुप देख कर बेहद दुखी हो गए थे।


14 नवंबर का दिन था। हमारे राजस्व कॉलोनी में बाल-दिवस के अवसर पर बच्चों के लिए कविता पाठ का आयोजन किया गया था।


बचपन से हीं मुझे हिंदी में पढ़ने -लिखने का बड़ा शौक रहा है। इस प्रतियोगिता को ध्यान में रख कर मैंने एक तरकीब बनाई।


मेरे बेटे को आम से बड़ा लगाव था। भला फलों के राजा का दीवाना कौन नहीं होगा। मैंने बेटे को कविता -पाठ में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। जब उसे पता चला कि उसे आम पर कोई कविता याद कर सुनाना है तो थोड़ा उत्साह उसके अंदर जागृत होने लगा। अपने बच्चे को किसी विषय में इतना चाव लेता देख मेरा मन मयूरा नाच उठा। मैंने उसके साथ चूहलबाजियाँ करते हुए पूरा दिन बिताया। खेल -खेल में उसे एक पुराना गीत जो कि आम पर आधारित था। उसे याद हो गया।




बाल दिवस का दिन आ गया। उस पतियोगिता मे मेरा चीकू सबसे कम उम्र का प्रतिभागी था।


दर्शक -दीर्घा में सबसे आगे खड़ी मैं अपने बच्चे को निहार रही थी। प्रिंस कोट वाला ड्रेस पहने मेरा बेटा किसी नवाब से कम नहीं लग  रहा था। उसे दूसरे बच्चों के साथ खिलखिलाते देख ख़ुशी से मेरी ऑंखें छलक आईं थीं। मैं सांसे थामे उसकी बारी का इंतज़ार कर रही थी। थोड़े तोतले पर स्पष्ट आवाज़ में उसने बोलना शुरू किया।




"चीकू बड़ा प्यारा, माँ का दुलारा।

कोई कहें चाँद, कोई आँख का तारा

एक दिन वो माँ से बोला,

क्यों फूँकती हो चूल्हा,

क्यों करती हो रोज़ झमेला

क्यों न हम रोटियों का पेड़ लगा लें,

आम तोड़े, रोटी तोड़े,

रोटी आम खा लें,

माँ को आई हँसी,

हँसकर वो कहने लगी,

जियो मेरे लाल, जियो मेरे लाल।"


मैं तो कविता समाप्त होने के पहले हीं ताली बजाने लगी थी। मेरे साथ -साथ दर्शक दीर्धा भी  तालियां बजाकर मेरे बच्चे का उत्साह वर्धन किया। ख़ुशी के मारे मैं रो पड़ी थी। मैंने अपने बेटे के रूप में अपना भरपूर बचपन जी लिया।


मेरे बेटे को प्रोत्साहन पुरस्कार से नवाज़ा गया। उस अनमोल तोहफ़े से उसका खोया आत्म विश्वास लौटने लगा। वह अब धीरे -धीरे लोगों से घुलने -मिलने लगा। उसे ख़ुश देख मैं भी चहकने लगी थी।


आज़ मेरा चीकू बहुत बड़ा हो गया है, परन्तु जब भी वह मेरे आस -पास होता है मैं अपने बचपने मैं लौट आती हूँ। मेरा बेटा मुझसे हँस कर कहता है "तुम कभी बड़ी मत होना माँ। यूँ हीं बच्ची की तरह खिलखिलाती रहना



सच हीं कहा गया है बच्चे भगवान का रूप होते है। तभी तो उनका हर रूप लुभाता है। अपने बच्चों के साथ हम भी अपना भूला बचपन जी लेते हैं।




आईए इस बाल-दिवस बच्चों के साथ-साथ अपने अंदर छुपे बच्चे का भी जश्न मनाएं।


आरती

 
 
 

2 commentaires


Dr. Ankita Shreya
Dr. Ankita Shreya
14 nov. 2021

Beautiful story 💕

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Arti Shrivastava
Arti Shrivastava
15 nov. 2021
En réponse à

Thank you 😊

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