"माँ"
- Arti Shrivastava
- May 9, 2020
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सीढ़ियों से उतरते वक़्त अचानक मेरे पति का पाँव मुड़ गया। वे कराहते हुए पैर पकड़ कर वहीं बैठ गये। उनकी आँखों में आंसू थे। उनका ऐसा हाल देखकर हम घबरा गये। उन्हें सहारा देकर हम वापस घर लेकर आये। दरअसल हम उन्हें स्टेशन छोड़ने जा रहे थे। शाम में उनकी ट्रेन थी। उन दिनों वे नेपाल की सीमा पर पदस्थापित थे। मुझे बच्चों की पढ़ाई के कारण उनसे अलग रहना पड़ता था। थोड़ी ही देर में उनका पाँव सूज गया। उन्हें डॉक्टर के पास ले जाया गया। जाँच के बाद पता चला कि पैर में हेयर क्रैक हो गया है। प्लास्टर चढ़ाकर उन्हें तीन महीने के लिए आराम की सलाह दी गई। काफी परेशान हो गई थी मैं ,"क्या होगा अब? कैसे ये सब झेल पाऊँगी?" बुरे-बुरे ख्याल मन में आ रहे थे कि कैसे सब ठीक होगा? दूसरे दिन मैंने अपनी माँ को फ़ोन पर सारी बातों की जानकारी दी। मेरी बातों में परेशानी स्पष्ट झलक रही थी। मैने सुबकते हुए माँ से कहा, "कैसे क्या हो गया, कुछ समझ में नहीं आ रहा।अकेले सब कुछ कैसे कर पाऊँगी?" माँ ने बोला, "रो क्यों रही हो पगली, इसी बहाने तुम लोग साथ तो रह पाओगी। अकेले उनसे दूर रहकर कितनी परेशान रहा करती थी। ये समय साथ में हँसकर गुजार लो। ये तो महज कुछ दिनों की ही बात है। इसका भरपूर आनंद उठा लो। " सच! कितनी सरलता से माँ ने इस पीड़ादायक सफर को आसान बना दिया था। मैं भी अब ज्यादा राहत महसूस कर रही थी। मैं पुराने खयालो में खो गई। कैसे मेरे पापा की पैर की हड्डी टूटी थी। उन्हें भी प्लास्टर लगा था। वे भी तीन महीने के लिए बिस्तर पर पड़े थे। हम पांच भाई-बहन थे। हमारा संयुक्त परिवार था। माँ सरकारी स्कूल में अध्यापिका थी। कैसे स्कूल और घर में ताल-मेल बैठा पाती थी? हमारा और पापा का कैसे देख-भाल कर पाती थी? कभी उनके चेहरे से परेशानी झलकती ही नहीं थी। बचपन में रसोई की वो सोंधी खुशबू, जब खाना पकाते समय तुम हमें चटाई पर बैठा कर पढ़ाती थी, आज भी याद है माँ। रविवार का दिन तो मानो त्यौहार ही होता, जब तुम तरह-तरह के पकवान बनाती थी। जन्माष्टमी पर घर को सजाना, टेबल के चारों पैर जोड़कर मंदिर बनाना, झूले लगाना सब कुछ याद है मुझे। कैसे इतना सब कर पाती थी तुम माँ ? तीन घंटे की परीक्षा में, प्रश्नों को हल करते समय मेरे पसीने छूट जाते थे, परन्तु जीवन का कौन सा ऐसा प्रश्न है, जिसका जवाब तुम्हारे पास नहीं होता। कितनी सुगमता से किसी समस्या का समाधान ढूंढ लेती हो। हर बार अपने प्रश्नों का हल तुम्हारे जवाब में ढूंढती रहती हूँ माँ। जीवन के हर उतार-चढ़ाव में कितनी मजबूती से तुमने हमें थामे रखा। तुम घर की वो मजबूत आधार-शिला हो जिस पर हम टिके हुए हैं। सच ! दुनिया में माँ का प्यार कितना अनमोल एवं निःस्वार्थ होता है। वे धैर्य एवं साहस की प्रतिमूर्ति होती हैं। आज विज्ञान कितनी तरक्की कर चुका है। हमारी पहुँच चाँद-तारों तक है। घंटों का काम हम मिनटों में कर लेते है। नित नये अविष्कार हो रहे हैं, परन्तु आज तक कोई माँ पर अनुसन्धान नहीं कर पाया। पाई-पाई जोड़कर वो अपना गुल्लक भरती है, परन्तु उसमें ख्वाहिशे हमारी पलती हैं। चेहरे की महीन रेखाओं ने उसे दादी माँ, नानी माँ बना दिया। परन्तु हम तो चेहरे पर पालिश लगा, बालों में बनावटी रंग सजा, अपनी जिम्मेदारी उस पर थोपते रहते हैं। माँ है तो क्या गम है कहकर ठगते रहते हैं। हमारे शौक पूरे करते समय आज भी वो कितनी खुश हो जाती है। हमने अपनी खुदगर्जी में कभी उसे समझने का प्रयास ही नहीं किया, कभी माँ के अंदर भी एक बच्चे का दिल धड़कता तो होगा, उसके अरमां भी कभी मचलते तो होंगे। किसी बच्चे के जीवन में कोई कष्ट नहीं होता, गर उसकी भाग्य-रेखाएँ रचने का हक उसकी माँ को मिला होता।अपना गम छुपा कर हमारे चेहरे पर मुस्कान लाती है माँ। संसार की रचना करते समय स्वयं विधाता भी घबराया होगा। थक -हार कर कभी तुम्हारी शरण में तो आया होगा।। गर मालूम होते उसे सारे प्रश्नों के जवाब खुद ही। सारे जगत के लिए उसने माँ नहीं बनाया होता।। आज मैं विश्व की समस्त माताओं को कोटि-कोटि नमन करती हूँ।

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