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"पापा"

  • Writer: Arti Shrivastava
    Arti Shrivastava
  • Jun 21, 2020
  • 4 min read

"कौन-कौन विलायत जायेगा?" सहसा पापा की आवाज आँगन में गूँजी। मैं दौड़ कर माँ के पास गई," मुझे अच्छे कपडे पहना दो मुझे विलायत जाना है।" माँ थोड़ा झुंझलाते हुए पापा से कहती "क्या बोल देते हैं, आ कर नए कपड़े पहनने की ज़िद करने लगती है। भाई-बहनो में मैं सबसे बड़ी थी, परन्तु हरकतें सबसे छोटे बच्चे की तरह।




हाँ ! पापा आपके लाढ़-प्यार ने मुझे कभी बड़ा होने ही नहीं दिया। असमय ही किसी चीज की ज़िद करना, किसी भी बात को जल्दी दिल से लगा बैठना, यही सब तो करती थी मैं। पढ़ाई से ज़्यादा नई किताबों पर मेरा ध्यान होता था। बिना किसी शिकन के आप मेरी फरमाइशें पूरी करते रहे।


बदलते वक्त के साथ मैं कब सयानी हो गई इसका कोई अहसास ही नहीं रहा। मैं ब्याह कर ससुराल आ गई। विदाई के वक्त सिर्फ आपने इतना ही कहा था, तुम्हारे ससुराल वाले पढ़े-लिखे हैं, तुम्हे जरूर पढ़ाएंगे।


जहाँ तक मुझे याद है किसी ने मुझे प्रत्यक्ष रूप से पढ़ाई के लिए मना नहीं किया। परन्तु मैं आगे नहीं पढ़ पाई पापा। आपकी बेटी अपनी काबिलियत रसोई में तलाशने लगी। गोल रोटी बन रही है या नहीं, स्वादिस्ट पकवान बना पा रही हूँ या नहीं तक अपने आप को सीमित कर दिया। अब अपने लिए तारीफ के दो शब्द सुनकर काफी प्रफुल्लित हो जाती थी मैं। अच्छी बहु, अच्छी पत्नि, अच्छी माँ बनने की चाह में कब अपने लक्ष्य से भटक गई पता ही नहीं चला। मैं अपने वर्तमान में संतुष्ट हो गई थी।


आज इन लॉकडाउन के दिनों में मैं पुरानी यादों में फिर से लौट आई हूँ। वो कितने सुहाने दिन थे जब आप कचहरी से लौटते, और हमें आपका फलों से लदा थैला खोलने को मिलता। अब वैसी मिठास कही किसी फल में नहीं मिलती पापा। कभी आपने हमारे खाने-पीने में कोई कटौती नहीं की। हमारे हर सुख सुविधा का पूरा ध्यान रखा।


आपने हमारे खातिर उच्च न्यायालय के प्रतिष्ठित पद को त्याग दिया। आप अपने परिवार व बच्चों के लिए हमेशा फिक्रमंद रहे। आपने हमें धैर्य के साथ-साथ खुद पर भरोसा करना सिखाया। हमारी छोटी-छोटी उपलब्धियों पर कितना खुश हो जाते थे आप। मैं आपको शब्दों में नहीं बांध पाऊँगी पापा। आज तो अपनी तारीफ के दो शब्द सुनने को कान तरस जाते हैं। पहले इन बातों से ज्यादा फर्क ही नहीं पड़ता था। आपकी छत्र-छाया ने हमारे आस-पास इतना कठोर घेरा बना रखा था, कि बाहरी आडम्बर का कोई रंग ही नहीं चढ़ा था हम पर। हमारी एक अलग दुनिया थी,अपने आप को फलक तक देखने की वो चाह।


सच्चाई यही है कि हर पिता अपने बच्चों को सफलता के शीर्ष पर देखना चाहता है। उसकी अपनी कोई जरूरतें नहीं होती, सदा बच्चों की हर सुख-सुविधा का ध्यान रखता है। अपनी भावनाओं को तो कभी व्यक्त नहीं कर पाता। परन्तु, जब हम बच्चे किसी तकलीफ में होते हैं, अपनी रातों की नींद सबसे ज्यादा कुर्बान करता है। धुंधले चश्मों का बहाना कर अपनी अश्रु को बेवजह छुपाता फिरता है।


बच्चों की हर उपलब्धि पर वो कितना खुश हो जाता है,ये मैने अपने बच्चों के पिता को बहुत करीब से देखा है। सुना है बच्चे अपने माँ के ज़्यादा करीब होते हैं, किन्तु मेरे बच्चे अपने पापा के अच्छे दोस्त हैं। ये काम सिर्फ माँ का है, ऐसा मुझे कभी महसूस ही नहीं होने दिया। वे हर प्रकार से अपने बच्चों की मदद करते हैं, और इसका पूरा श्रेय बच्चों की माँ को दे देते हैं।




किसी कक्षा में एक वर्ष के बजाय दो वर्षों तक रह जाना कितना दुःखदायी होता है। परन्तु आपने तो अपना कैरियर ही अपने परिवार व बच्चों पर कुर्बान कर दिया।


अपने बच्चे को खुद से आगे बढ़ता देखना हर पिता क ख्वाब होता है। हारना किसी को भी पसंद नहीं होता है। परन्तु अपने ही बच्चों से हारकर एक पिता ही असीम आनंद की अनुभूति करता है। चुप-चाप रहकर वो बच्चों के चेहरे को पढ़ लेता है। बिना बोले वो हमारी हर जरूरतें पूरी करता है।


सपने बच्चे देखते हैं, पूरा करना पिता सिखाते हैं। वो हमें खुद पर भरोसा करना भी सिखाते हैं। कभी डांट कर तो कभी प्यार से हमारा सही मार्गदर्शन करते हैं। किसी नारियल की तरह बाहर से सख्त और अंदर से कोमल होते हैं।


पिता उस वट-वृक्ष की तरह होते हैं, जो हमें मजबूती के साथ-साथ छाँव भी प्रदान करते हैं। अमीर हो या गरीब अपने बच्चों के लिए ये अलादीन का चिराग होते हैं।


सच ! बच्चों का अभिमान व गुरुर होते हैं पिता, जिसे कभी कोई तोड़ या छीन नहीं सकता।


मेरे प्यारे न्यारे पापा ,

जीने का अहसास पापा।

तपते जीवन के रेगिस्तान में ,

ठंढी शीतल छाँव पापा।

जीवन के उतार-चढ़ाव में ,

वट-वृक्ष से आधार पापा।

मायावी दुनिया के बंधन में ,

सच्चे प्यार की पहचान पापा।

उबड़-खाबड़ सुनसान डगर में ,

परछाई बनकर साथ पापा।

ढलती उम्र की सिलवटों में ,

बचपन के अहसास पापा।

सूनी आँखों के ख्वाब पापा ,

मेरी रचना के आधार पापा।




मेरी लेखनी में इतना साहस कहाँ जो किसी पिता को बांध सके। बस मेरी चरण-वंदना स्वीकार करें।




 
 
 

6 Comments


Arti Shrivastava
Arti Shrivastava
Jul 04, 2020

Thanks everyone 😊

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ranjanayush2107
Jun 30, 2020

Bahut Sundar👌👌

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Dr. Ankita Shreya
Dr. Ankita Shreya
Jun 21, 2020

Har bacche ke dil ki kitni saratla se keh gayi aap apni likhawat se.. Asha hai aap isi tarah hamari dil ki vo baatein batati rahengi jinko Kehne ke liye shayad hamare paas shabd nahi hote

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C B Srivastava
Jun 21, 2020

Father's Day ke mouke par Papa ke sath bitae Palo ki yad me Aapki ye kahani sarahniye hai. wakai me Papa apni betiyo ke liye sabse pyare hote hai.

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sprihashruti
Jun 21, 2020

Bahut sundar rachna.....Apne emotions ko bahut hi saralta se sabdo me pirone ki aapki Kala ki mai kayal hu👏👏👏👍👍👍aise hi likhte rahiye...✍️✍️✍️

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