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“डॉक्टर बिटिया”

  • Writer: Arti Shrivastava
    Arti Shrivastava
  • Jun 30, 2020
  • 5 min read

आसमान में काले-काले बादल छाये थे। हल्की बारिश हो रही थी। मेघों की गर्जना से मेरी गोद में लेटा मेरा बेटा चीकू अपनी आँखें मूँद-खोल रहा था। दरअसल एक घंटे के भीतर ही दस्त के कारण वो निढाल हो गया था। वहीं पास में बैठी मेरी बेटी हनी अपने सुस्त पड़े भाई व मुझे अपलक निहार रही थी।


घबराहट के मारे मेरा बुरा हाल था। बेटे की हालत लगातार बिगड़ती जा रही थी। मैं दौड़ कर अपने पडोसी के पास पहुँची। "कृपया मेरी मदद करें। " मैं उनसे गुहार लगा रही थी। उन्होंने डॉक्टर का पता दे दिया। मैं दोनों बच्चों के साथ डॉक्टर के पास पहुँची। डॉक्टर ने मेरे बेटे का परीक्षण किया। उनका कहना था कि शरीर से बहुत ज्यादा पानी निकल गया है, इसलिए तुरंत इसे लेकर भर्ती हो जायें। इसे पानी चढ़ाना पड़ेगा।


"कुछ और उपाय नहीं है सर?” मैंने डॉक्टर से पूछा । "दोनों बच्चों को अकेले कैसे संभाल पाऊँगी? कुछ दवा हीं दे दिजिये। उन्होंने मुझे घूर कर देखा। "आप अनपढ़ हैं क्या? बच्चे की हालत नहीं दिख रही? इसको लेकर जल्दी से भर्ती हो जाईये। और कोई उपाय नहीं है।" मैं निराश हो कर घर लौटने लगी। शायद डॉक्टर को मेरी बेबसी पर दया आई। उन्होंने पुर्ज़े पर कुछ दवाइयों के नाम लिख कर मुझे थमा दिया। मैं दवा ले कर घर लौट गई।


बेटे की हालत लगातार बिगड़ती जा रही थी। मैं उसे गोद में लिटा कर रोये जा रही थी। मेरी बेटी दौड़कर रसोई से कटोरी-चम्मच ले आई। "मम्मी छोटा भाई को दवा दे दो ना।" मैंने सर हिलाकर हाँ कहा। दवा देने के कुछ घंटे के बाद बेटे की हालत में थोड़ा-थोड़ा सुधार होने लगा। अब जाकर कहीं मेरी जान में जान आई। जैसे-तैसे रात कटी। इतनी छोटी सी मेरी बेटी अचानक जड़ सी हो गई थी; न खाने की सुध, न सोने की चिंता। बस एक-टक अपने भाई को निहारते रहती थी। मुझे भी इतना होश कहाँ था, बस बिस्कुट का डब्बा उसे पकड़ा दिया था।


कब सुबह हुई पता हीं नहीं चला। जब दरवाजे की घंटी बजी, तब जाकर कहीं नींद खुली। सामने दरवाज़े पर मेरे पति खड़े थे। मैंने एक हीं साँस में सारा वृतांत उन्हें सुना दिया। "ओह ! इतना सब कुछ हो गया मेरी अनुपस्थिति में , खैर हनी कहाँ है?" सामने बेटी को न देख उन्होंने पूछा। अचानक दो दिनों से खामोश हनी दौड़कर पापा से लिपट कर रोने लगी। "पापा आप हमें अकेला छोड़ कर अब कभी मत जाना, छोटा भाई कुछ बात नहीं करता चुपचाप माँ की गोद में पड़ा रहता है और माँ भी रोती रहती है। डॉक्टर अंकल बता रहे थे कि वो ज़्यादा बीमार है। " "नहीं बेटा अब कभी तुमलोगों को अकेला छोड़ कर नहीं जाऊंगा।" पति कि भी ऑंखें नम थीं।


इस घटना के बाद मैंने अपनी नन्ही परी में एक बहुत बड़ा बदलाव महसूस किया। पता नहीं ये दैवीय चमत्कार था या अपनी बेबस व लाचार माँ को इतने करीब से देखने का अनुभव, अब वो जब भी गुड्डे, गुड़ियों का खेल खेलती उसकी गुड़िया डॉक्टर हीं बनती थी। उससे जब भी खिलौनों के लिए पूछा जाता, उसे डॉक्टर सेट हीं चाहिए होता था। किसी का प्राथमिक उपचार करना हो, या किसी की मदद करनी हो, उम्र के साथ-साथ इतनी समझदार वो हो चुकी थी।


हद तो तब हो गई जब उसने ग्यारहवीं में दाखिला लिया तो गणित को छोड़ सिर्फ बायोलॉजी को चुना। सारे शिक्षक-वृंद ने हम माता-पिता को बुलाकर हैरानी से पूछा, "इसने गणित विषय को क्यों छोड़ दिया? पढ़ाई में तो काफी होशियार है ये, परन्तु ऐसा कदम क्यों उठाया? एक हीं जवाब था उसका, "मुझे सिर्फ और सिर्फ डॉक्टर हीं बनना है, फिर गणित का क्या काम।"


अब जाकर कहीं हमें पूरा माजरा समझ आया। वो जी-जान से मेहनत करती थी। बारहवीं के बाद जब दूसरे वर्ष भी उसका दाखिला अच्छे मेडिकल कॉलेज में नहीं हो पा रहा था, हमारा विश्वास भी डामाडोल हो गया था। मैं कुंडली में ज्यादा विश्वास रखती हूँ। मैंने उसकी जन्म कुंडली अपने पंडित जी को दिखलाया। वे कह रहे थे, "जितना मिल रहा है उतना हीं ले लो। आगे बहुत अच्छा होता मुझे नहीं दिख रहा। " सामने बैठी मेरी बेटी ये सुनकर रो रही थी। साथ-ही-साथ ये भी कह रही थी, "पापा मुझे एक मौका और चाहिए। मैं अगले वर्ष अच्छे कालेज में अपने बल-बूते जरूर दाखिला ले लूंगी। हम माँ-बाप के डगमगाते विश्वास को मजबूती प्रदान किया उसके आशुतोष सर ने। उन्होंने कहा "अपनी बेटी को आप पहचान नहीं पाये हैं, उड़ीसा में पूरे राज्य में प्रथम स्थान पर रही है वो क्या कर सकती है आपको अंदाजा नहीं हैं। "


मेरी बेटी ने इस कथन को सच कर दिखाया। अपनी मेहनत से अपनी किस्मत बदल डाली। उसे बिहार के एक प्रतिष्ठित चिकित्सा महाविद्यालय आई. जी. आई. एम. एस. में दाखिला मिल गया था।


कहीं न कहीं छोटे भाई की बीमारी व बेबस माँ की लाचारी ने उसे डॉक्टर बनने के लिये प्रेरित किया।




मेरी नन्ही गुड़िया ने अब डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी कर अपना सपना साकार कर लिया। अब मेरे घर की छोटी डॉक्टरनी दुनिया के लिए डॉ. अंकिता श्रेया बन चुकी है। हमारे लिये ये बहुत गर्व की बात है कि हम एक डॉक्टर बिटिया के माता-पिता हैं।


डॉक्टर किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। बचपन से लेकर बुढ़ापे तक हमें एक डॉक्टर की जरुरत होती हीं है। कोरोना महामारी आज पूरे विश्व का नासूर बन बैठा है। हमारे डॉक्टर अपनी जान जोखिम में डाल कर हमारी रक्षा के लिए सतत प्रयत्नशील हैं। हम इनकी महिमा का बखान आये दिन अख़बार या टेलीविज़न पर सुनते रहते हैं। उनके लिये जाति-धर्म कोई मायने नहीं रखता। मानवता की सेवा हीं उनका परम धर्म है। उनकी मुस्कान हमें हर बीमारी से लड़ने की शक्ति प्रदान करती है। माँ-बाप के अलावा एक डॉक्टर हीं हमें खुद में आत्मविश्वास रखना बहुत ईमानदारी से सिखाते हैं।


आज कोरोना वायरस के कारण पूरे विश्व में हमारे रक्षक, कदम कदम पर हमें सफेद लिबास में हीं दिख रहे हैं। आज देश के प्रहरी,हमारी खाकी भी सफेद लिबास के आगे नतमस्तक हैं। सामाजिक दूरी बनाकर घर पर रहने का पाठ पढ़ाने वाले डॉक्टर अपने मरीज़ों के लिये खुद के घरों से हीं दूर हो गये हैं।


भगवान प्रत्यक्ष रूप से हमारी मदद नहीं कर सकते, इसलिये हमारी रक्षा के लिये उन्होंने डॉक्टर को धरती पर भेजा। आज विज्ञान बहुत तरक्की कर रहा है। आधुनिक यंत्रो के द्वारा आज हमारे डॉक्टर जटिल-से जटिल बीमारी का इलाज करने में सक्षम हैं। सच ! हमारे डॉक्टर धरती पर भगवान हैं। उनके बिना सुखद विश्व की कल्पना नामुमकिन है।


Source : Sajjad Hussain/AFP


मेरी लेखनी इतनी सशक्त नहीं है जो किसी डॉक्टर को कलमबद्ध कर सके। बस विश्व के सभी डॉक्टर व चिकित्सा क्षेत्र में योगदान दे रहे सभी कर्मियों के जज्बे को मेरा शत-शत नमन है।


# doctors # corona warriors



 
 
 

4 Comments


Arti Shrivastava
Arti Shrivastava
Jul 04, 2020

Thanks Rammi 😄

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Arti Shrivastava
Arti Shrivastava
Jul 04, 2020

Thanks mere nanhe jadoogar 😄

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Anita Srivastava
Jul 01, 2020

Bachche agar nischay Kar le to Sab sambhav ho sakta hai. Bahut achchi kahani.

Happy Doctor's day.

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ranjanayush2107
Jun 30, 2020

Awesome bua 👌👍

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