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"गुड बॉय"

  • Writer: Arti Shrivastava
    Arti Shrivastava
  • Jul 25, 2020
  • 4 min read

सोशल मिडिया पर आज एक तस्वीर देखकर मन विचलित हो गया। उस तस्वीर में एक कुत्ता दिख रहा था। उसने मुँह में एक पर्ची दबाई हुई थी। उस पुर्जे पर ऐसा लिखा था कि उसके मालिक ने उसे इसलिए छोड़ था क्योंकि वो "गुड बॉय" नहीं बन सका।



इस घटना से मैं अपने बचपन की यादों में लौट आई हूँ। मेरा मायका मोतिहारी जहाँ मेरा संयुक्त परिवार था। दादा-दादी, अम्मा-बाबूजी, माँ-पापा, चाचा-चाची, भाई-बहनों से मेरा भरा-पूरा घर था। बहुत खुशहाल बचपन था मेरा।


ना जाने कहाँ से, एक कुत्ता आकर हमारे घर के कैंपस में रहने लगा था। हम सब उसे बहुत प्यार करते थे। वो हमसे काफी घुल-मिल गया था। हम सब उसे प्यार से टॉमी बुलाते थे। हमारे एक चाचाजी जो जन्म से हीं गूंगे-बहरे थे, उनका कुछ ज्यादा हीं लगाव था टॉमी से। वो नियमित रूप से अपने खाने का एक हिस्सा उसे जरूर खिलाते थे। टॉमी घर का एक अभिन्न अंग बन गया था। मेरा सबसे छोटा भाई बिंटू जो उन दिनों घुटनों के बल चलता था, वो भी टॉमी से नहीं डरता था। ऋतु, अंशु के लिए तो जैसे वो खिलौना हीं था।


दादी छठ-व्रत करती थीं। हम सब के साथ टॉमी भी छठ-घाट चला आया था। दादी जब पूजा करने के लिए नदी के अंदर गई तब वो भी उनके साथ पानी में घुस गया। टॉमी के हिसाब से पानी गहरा था, वो डूबने लगा। दौड़कर बड़े भैया और घर के अन्य सदस्य घर से बड़ा बाँस उठा कर लाये। फिर उसे पानी में डालकर उसे सहारा दिया गया, तब जाकर कहीं टॉमी की जान बच पाई।


हम बच्चों के साथ-साथ टॉमी भी अब बड़ा हो रहा था। पूरे परिवार का स्नेह पाकर वो अन्य लोगों (जैसे हमारे पड़ोसी) से भी यही उम्मीद लगाने लगा था। उनलोगों के आगे-पीछे घूमना, खेलना उसे अच्छा लगता था। परन्तु, वे लोग टॉमी के इस व्यवहार को पसंद नहीं करते थे। हमारे पड़ोसी दादी के पास आकर टॉमी की शिकायत करने लगे। अगर हम बच्चे टॉमी की तरफदारी करते तो वे हमारी भी शिकायत दादी के पास लेकर आ जाते। दादी इस बात से बहुत आहत रहने लगी।


टॉमी में एक बड़ा बदलाव हमलोगों ने महसूस किया। हमारे जो भी मोहल्ले वाले टॉमी या हम बच्चों की शिकायत लेकर दादी के पास आते, टॉमी उन्ही के घर जाकर दरवाजे पर मिट्टी खोद देता, पौधों को नुकसान पहुँचाता, या उनका रास्ता रोक कर पेशाब आदि करने जैसे हरकतें कर अपना विरोध जताता।


प्रतिदिन के उलाहनों से दादी व मेरे परिवार के बड़े लोग बहुत दुःखी रहने लगे। आखिरकार इससे निजात पाने के लिए दादी और परिवार के अन्य सदस्यों ने मिलकर एक फैसला लिया। हमारा खेत जो रतनपुर में था, वहाँ जाकर टॉमी को किसी गाँव वाले के हवाले करने का सोचा सबने। जहाँ उसकी देख-भाल भी ठीक से हो, तथा प्रतिदिन की शिकायत से छुट्टी भी मिल जाये।


एक जीप में घर के कुछ सदस्यों के साथ वो खुशी-खुशी रतनपुर जाने के लिए निकला। वहाँ किसी भी प्रकार से दूसरों के हवाले कर उसे धोखे में रखकर जल्दी-से-जल्दी मेरे घर वाले टॉमी को छोड़ कर चले आये। हम बच्चों को टॉमी की बहुत याद आ रही थी। उदास तो दादी भी हो गई थीं, परन्तु उन्हें बहुत बड़ी राहत मिली कि अब कोई उलाहना लेकर हमारे घर तो नहीं आयेगा।


दिन-भर हम सब केवल टॉमी की हीं बातें करते रहे। सबका मन बहुत भारी हो गया था। हमारा दुलारा टॉमी अब बहुत दूर जो हो गया था। दादी बार-बार हमें दिलासा दे रही थी, "जब तुमलोग छुट्टियों में रतनपुर जाओगे टॉमी से मिल लेना। देख लेना वो वहाँ कितना खुश होगा गाँव का परिवेश पाकर।"


हम सब बहुत ध्यान से दादी की बातें सुन रहे थे। हमारे बाबूजी भी दादी के पास खड़े थे। अचानक बाबूजी चौंक कर पीछे मुड़े "अरे तुम कैसे यहाँ पहुँच गए?" उनकी आवाज सुनकर हम सब उस ओर मुड़े। टॉमी अपनी दोनों टांगे बाबूजी के कंधे पर रख कर खड़ा था। हमारी ऑंखें छलछला आई। हमारा टॉमी लौट आया था। हम सब को ढूंढते-ढूंढते वो मीलों दूर गांव से वापस आ गया था।


हम बच्चे तो टॉमी को देखकर बहुत खुश थे, परन्तु दादी थोड़ी परेशान जरूर हो गई थीं। फिर से वही मुहल्लेवालों की शिकायते, टॉमी की शैतानियां भी बढ़ती जा रही थी। दादी ने सबको हिदायत दी, "टॉमी को अब कोई ज़्यादा प्यार नहीं करेगा।" दादी के कथन अनुसार हमने टॉमी को प्यार करना कुछ कम कर दिया। सब घर वाले उसे नज़रअंदाज करने लगे। टॉमी दिन-प्रतिदिन दुबला और चिड़-चिड़ा होता चला गया। एक दिन उसने हमारे घर के पास मन्दिर में जाकर अपने प्राण त्याग दिए।


मैं उस समय बहुत छोटी थी। इस घटना का उस वक़्त मुझ पर कुछ ज्यादा असर नहीं हुआ था, परन्तु आज सोशल मीडिया पर साँझा इस कुत्ते की तस्वीर ने मुझे अंदर तक झकझोर कर रख दिया। हमने भी तो अपने मुहल्ले वालों को खुश रखने के चक्कर में उस ईमानदार साथी को खो दिया था।


साझा किये गये कुत्ते की तस्वीर में पुर्जे पर लिखा था कि वो अपने मालिक के नजर में गुड बॉय नहीं बन सका। क्या उस कुत्ते के मालिक को सिर्फ इसी कारण से उसे छोड़ देना चाहिए था? क्या गुड बॉय को हीं समाज में या घर में स्थान मिलाना चाहिए? किसी को अच्छा या बुरा का तमगा देने वाले हम कौन हैं? सबको एक हीं मापदंड पर तौलना निरासर मूर्खता है। हर प्राणी में एक अलग विशेषता, एक अलग खूबी व एक अलग गुण होता है। प्रत्येक प्राणी किसी न किसी क्षेत्र में दक्ष होता है। कोई पढ़ाई में होशियार होता है, तो कोई संगीत या नृत्य में तो कोई बहुत अच्छा धावक या तैराक होता है। हम गृहिणियां भी गृह कार्य में दक्ष होती हैं। सबको एक हीं तराजू में तौलने वाले वही होते हैं जो कुत्ते के मुँह में पर्ची डालकर या टॉमी जैसे मासूमों को मरने के लिए छोड़ देते हैं।



कहीं आपने भी जाने-अनजाने कोई तराजू अपने अन्दर छुपा कर तो नहीं रखा है?


# unique # different



 
 
 

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