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"कहाँ हो तुम?"

  • Writer: Arti Shrivastava
    Arti Shrivastava
  • Aug 2, 2020
  • 4 min read

आज मैं बहुत खुश थी। मेरा दाखिला उच्च विद्यालय में हो गया था। शहर का एक प्रतिष्ठित स्कूल था। उन दिनों उसमें दाखिला होना बहुत गर्व की बात थी। शहर में जितने भी विद्यालय थे, उनमे एम. जे. के. गर्ल्स हाई स्कूल सर्वोपरि था। मेरे माँ-पिताजी भी इस बात से बहुत खुश थे।


नया विद्यालय, नया परिवेश सब कुछ बहुत अलग सा था। धीरे-धीरे नये विद्यालय में मैं सहज होते जा रही थी। नये-नये दोस्त, नई किताबें, नई शिक्षिकाएँ; इन सब से मुझे एक असीम आनंद की अनुभूति हो रही थी। मैं एक हॅसमुख स्वभाव की लड़की थी। इसलिए बहुत सारे दोस्त मुझे जल्द हीं मिल गये थे। वैसे तो पूरी कक्षा हीं मेरी मित्र-मंडली में शामिल थी।




परन्तु मेरी एक सहेली थी, जो सबसे अलग, सबसे जुदा थी। पता नहीं कब वो मेरी शुभचिंतक बन गई। मुझे किससे बात करनी है, किसके साथ टिफ़िन खाना है, किसके साथ उठना-बैठना है, हर चीज का ध्यान रखती थी वो। एक बड़ी बहन की तरह देखभाल करती थी। जिस दिन वो स्कूल नहीं आती थी, मैं उस दिन अपने आप को बहुत आज़ाद महसूस करती थी। जो जी में आता वही करती थी। बाकी सहेलियाँ मुझे छेड़ती थीं कि आज तो तुम्हारी चांदी है, खुल कर मस्ती करो। मैं भी इन चुहलबाजियों से मन-हीं-मन मुस्कुरा उठती थी।


मेरी वह सहेली "अलका" के घर भी मेरा आना-जाना था। ठीक मेरी सहेली की तरह उसके माँ-पिताजी, उसके छोटे भाई-बहन अमृता और सोनू सब मुझे बहुत प्यार करते थे। चाचीजी तो मुझे सिर्फ बेटा कह कर हीं सम्बोधित करती थीं। मैं एक बार पूजा में शामिल होने उसके घर गई थी। चाचीजी का पूरा ध्यान मुझ पर हीं था। हर चीज मुझसे हीं पूछना, हर अधिकार मेरा हीं। मुहल्ले की सारी औरतें चाचीजी से पूछ रही थीं, "आखिर ये लड़की कौन है? जो हर कम आप इससे हीं पूछ कर कर रही हैं।" उनका जवाब था, "ये अलका की जुड़वा बहन है। मैं दो बच्चों को एक साथ नहीं संभाल सकती थी, इसलिए इसे नानी के पास छोड़ रखी हूँ।" चाचीजी के इन स्नेह भरी बातों को सुनकर मेरी आँखे छलक आई थीं। अमृता और सोनू भी मुझसे सगी बहन से ज्यादा प्यार करते थे।


अपने सहेली की देखभाल में मैं भी फल-फूल रही थी। मैं भी उन दिनों अच्छे नम्बरों से पास होती थी। सहेली रूपी बड़ी बहन का जो साथ था, मेरा कुछ गलत हो हीं नहीं सकता था। समय गुजरता रहा हम दसवीं की बोर्ड परीक्षा की तैयारी में लगे हुए थे। तय समय पर परीक्षाएं भी समाप्त हो गयीं।


तीन महीने बाद हमारा परिणाम घोषित हुआ। अलका मुझसे बहुत अच्छे नम्बरों से पास हुई थी। मेरे थोड़े से कम अंक आये थे। जब वो मुझसे मिली तो मुझसे भी ज्यादा वो फूट-फूट कर रो रही थी कि तुम्हारे नम्बर कम क्यों आये? मैं क्या बोलती ? मेरी मेहनत में हीं कुछ कमी रही होगी, ऐसे कम अंक थोड़े हीं मिल जाते हैं। खैर! जो होना था वो हो चुका था।


अब कॉलेज में एडमिशन की बारी थी। हम दोनों का कॉलेज बदल चुका था। हम एक दूसरे से अलग हो गये थे। एक बहुत अच्छी सहेली, मेरी शुभचिंतक मुझसे दूर चली गई थी। उस समय से हीं मेरा प्रदर्शन पहले जैसा नहीं रहा। मैं एक साधारण विद्यार्थी बन कर रह गई थी।


अपने भाई-बहनों में मैं सबसे बड़ी थी। पापा ने मेरा ब्याह तय कर दिया था। निश्चित समय पर मेरी शादी भी हो गई। मैं अपने ससुराल आ गई। एक साल के अन्दर हीं मैं एक प्यारी बिटिया की माँ बन गई। मेरी पढ़ाई अब रुक गई । मैं अपने वर्त्तमान से खुश थी। जब मैं अपने मायके पहुँची तो खुशी-खुशी अलका से मिलने अपने पति और बेटी को लेकर पहुँची। वो घर पर नहीं थी, कोई प्रतियोगिता परीक्षा देने गई थी। उसके घर के बाकी लोग, चाचाजी तथा उसके भाई-बहन मुझे देख कर बहुत खुश हुए। कुछ देर बाद अलका भी पहुँची। मुझे देखकर वो ज्यादा खुश नहीं थी। वो ये कह रही थी की तुम बस परिवार बढ़ाओ, पढ़ाई से तुम्हे क्या लेना-देना? इसके बाद वो खामोश हीं रही। उसकी बहन अमृता बोल रही थी, "दीदी, आरती दीदी से बात कर लो। अब इनसे जल्द मुलाकात नहीं होगी। परन्तु उसने मुझसे फिर भी बात नहीं की।


मुझे भी उन बातों से कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ा। मैं भी अपनी हीं दुनिया में मस्त हो गई। कभी अपने मायके जाती भी, तो अलका से मिलने की कोशिश भी नहीं करती। परन्तु इधर कुछ दिनों से मैं तुमसे मिलने के लिए बहुत आतुर हूँ। "तुम" कहाँ हो दोस्त? मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है। अगर कहीं से भी "तुम" मुझे देख रही हो मुझसे सम्पर्क करो। मुझे माफ कर देना क्योकि मैं कभी तुम्हारी अहमियत समझ नहीं पाई। तुम्हारे पूरे परिवार और तुमसे मिलने के लिए बहुत अधीर हो रही हूँ। अगर कोई इस लेख के ज़रिये मुझे मेरी अलका से मिला दे मैं सदा उसकी आभारी रहूँगी।


बचपन की वो यादें

वो प्यारी-प्यारी बातें

जाने कहाँ हो गये वो गुम।

कल तक जब थी पास

नहीं समझ पाई थी मैं

आज न जाने कहाँ खो गये हो "तुम"।।


# friendship day # friends



 
 
 

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