"भाई-बहन का अनोखा बंधन"
- Arti Shrivastava
- Aug 3, 2020
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मैंने अपने पति से कहा, "कृपया पनीर को फ्रिज से बाहर निकाल दीजिये।" खुद रसोई में आकर घर के काम में व्यस्त हो गई। पति कुछ देर बाद आकर पनीर पकड़ाते हुए बोले, "लो मैंने पनीर निकाल दिया।" मैंने कुछ जवाब नहीं दिया। उन्होंने परेशान होते हुए पूछा, "सुन रही हो? मेरी बातों का जवाब क्यों नहीं दे रही हो? क्या हुआ? अरे तुम तो रोने लगी! इतनी हड़बड़ी थी तो बता देती। मैं जल्दी आकर पनीर दे देता।" मैंने फिर भी कुछ जवाब नहीं दिया। वे जब कुछ ज्यादा परेशान हो गये तो मैंने टेलीविज़न की ओर इशारा किया। वे समझ नहीं पाये। उस कमरे में मेरी बेटी बैठी हुई थी। वे बेटी से बोले, "देखो हनी मम्मी तुम्हारे लिए रो रही है।" बेटी दौड़ कर कमरे से बाहर आई। मुझसे लिपटकर बोली, "क्या हुआ मम्मी? हॉस्टल हीं तो जा रही हूँ पढ़ाई करने, जब भी छुट्टी मिलेगी घर आ जाउँगी।" मेरी आँखों में अभी भी आंसू थे। दरअसल उस दिन रक्षाबंधन का त्योहार था। टी. वी. पर गाना बज रहा था, "हम बहनों के लिए मेरे भैया आता है इक दिन साल में। आज के दिन मैं जहाँ भी रहूँ, चले आना वहाँ हर हाल में। "
हाँ, कितने बरस बीत गये राखी के त्योहार पर मायके गये हुए। जब पटना में थी तो मायका पास था। कभी-कभार राखी में भाइयों से मिलना हो पाता था। अब तो लगता है जैसे राखी बांधना हीं भूल गई हूँ। कितना सुहाना बचपन था। संयुक्त परिवार था मेरा। सब भाई-बहन एक हीं साथ पाले बढ़े थे। राखी का त्योहार आते हीं एक नये उमंग व उत्साह से मन प्रफुल्लित हो जाता था। हमारी इकलौती बुआजी उसी शहर में रहती थीं। उनके आने से घर की रौनक दोगुनी हो जाती थी। उन दिनों हाँथ से बने रेशमी राखियों का बहुत चलन था। हम बहनें रेशमी धागे से रंग-बिरंगी राखियाँ बनाने में मशगूल हो जाती थीं।

रक्षाबंधन वाले दिन हम सब भाई-बहन सुबह-सुबह नहा-धोकर नये कपड़े पहन राखी की तैयारी में लग जाते थे। बहन अनु कैसे रूठ जाती थी कि पहले मिठाई मैं खुद हीं खाऊँगी। भाई को नहीं खिलाऊँगी। रम्मी भी उदास नज़रों से उसका समर्थन करती। माँ के बहुत समझाने के बाद जाकर कहीं बात बनती। रोली, अक्षत, दही, से हम बहनें थाल सजाती, दीप जलाकर भाई की आरती उतार कर उसकी लम्बी उम्र की कामना करती। भाइयों की कलाई पर रेशमी डोर बांध अपने प्यार के बंधन को अटूट बना लेती। भाई भी हमें राखी की शगुन के साथ हम बहनों की रक्षा का वादा करते।
ऐसे हीं वादे का यथार्थ चित्रण मैंने कुछ दिनों पहले अख़बार में पढ़ा। घटना अमेरिका के छः वर्षीय बच्चे की है।

दरअसल ब्रीजर वाकर नाम के इस बच्चे ने अपनी बहन की जान कुत्ते से बचाई। वो कुत्ता उसकी बहन की ओर दौड़ा आ रहा था। ब्रीजर वाकर ने अपनी बहन को बचाने के लिए उस कुत्ते और बहन के बीच आ गया। फिर कुत्तों के झुंड ने वाकर पर हीं हमला कर दिया। उसने अपनी बहन का हाँथ पकड़ दौड़ना शुरू कर दिया। कुत्ते ने इतनी बुरी तरह से ब्रिजर नोंच कर ज़ख़्मी किया कि उन्हें नब्बे टाँके लगाने पड़े। उनसे जब पूछा गया कि आपको डर नहीं लगा, उसका कहना था अगर किसी एक को मरना पड़ता तो, वो मैं हीं होता। मैं अपने होते अपनी बहन पर कोई आंच नहीं आने देता। ऐसा होता है भाई-बहन का प्यार। इसकी मिसाल आज पूरी दुनिया दे रहा। जो कि किसी त्योहार का मोहताज नहीं है।
विदेशों में राखी जैसी कोई परम्परा नहीं है। परन्तु हमारी संस्कृति में इसे बहुत हीं खूबसूरती व भाई-बहन के प्यार के प्रतीक के रूप में सजाया गया है। प्राचीन काल से हीं राखी को विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया गया है। जैसे माँ लक्ष्मी ने भाई के रूप में रज़ा बली को राखी बाँधी। जब-जब किसी बहन के ऊपर घोर संकट आया, एक भाई उसके सामने संकटमोचन बन कर आया। हमारी भारतीय संस्कृति में कितने हीं भाई-बहन के उदाहरण भरे पड़े हैं।
एक भाई बखूबी अपने दायित्व को कभी पिता बनकर, कहीं पथ-प्रदर्शक बन कर, कभी दोस्त बनकर पूरा करता है। प्रत्येक बहन के लिए उसका भाई उम्र में छोटा हो या बड़ा उसके लिए सुपर हीरो होता है।
आज इसी रेशमी डोर के अमर प्रेम से बंधे भाई-बहन के प्यार में डूबे खूबसूरत त्योहार रक्षाबंधन को मैं नमन करती हूँ।
"मेरे भैया मेरे चंदा मेरे अनमोल रतन, तेरे बदले में ज़माने कि कोई चीज ना लूँ।"

# rakhi # brothers
Bahut badhiya 👌👍