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उससे बड़ा पुरस्कार आज मैंने पा लिया

  • Writer: Arti Shrivastava
    Arti Shrivastava
  • Sep 14, 2020
  • 3 min read

ओह! आज मैं यह कैसी दुविधा में फँस गई हूँ। मेरे बच्चों के विद्यालय का वार्षिक समारोह है। उसमें सभी अभिभावकों को आने के लिए आमंत्रित किया गया है। दरअसल मेरी बेटी को टाटा कमिंस की तरफ़ से "बेस्ट स्टूडेंट" का पुरस्कार मिलने वाला था। इसलिए मुझे विशेषकर इस अवसर पर मंच पर आकर अपनी भावनाएं व्यक्त करने के लिए आमंत्रित किया जाने वाला था। मेरे बच्चे काफ़ी उत्साहित थे कि माँ आज पूरे विद्यालय के सामने अपने विचार रखेगी, किंतु मैं तनाव में थी। मेरे बच्चे मुझे अंग्रेजी में भाषण देने के लिए तैयार कर रहे थे।


मैं एक हिन्दी माध्यम विद्यालय की छात्रा रही हूँ। ऐसा नहीं है कि मैं अंग्रेज़ी समझती नहीं हूँ, परंतु धारा-प्रवाह अंग्रेजी बोल नहीं पाती हूँ। मुझे आज तक याद है कि स्कूल के दिनों में मेरी सहपाठी प्रीति जब भी मंच पर आकर अपना भाषण अंग्रेजी में प्रस्तुत करती, मैं मन मसोस कर रह जाती। मेरी अंग्रेजी में भाषण देने की इच्छा बलवती हो जाती। परंतु मंच पर जाकर कभी अंग्रेजी बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। दरअसल प्रीति सेंट-टेरेसा कॉन्वेंट स्कूल से हमारे विद्यालय में पढ़ने आई थी इसलिए वह अच्छी तरह से अंग्रेजी बोल पाती थी। मैं उसकी तरह अंग्रेजी बोलने का सपना देखा करती थी।


जब मेरे बच्चे छोटे थे, मैं अपनी दीदी के यहाँ भूटान घूमने गई थी। मेरे जीजाजी भूटान में ही नौकरी करते थे। वहाँ के लोग भूटिया भाषा या अंग्रेजी में बात करते थे। कुछ हिंदी-भाषी लोग भी वहाँ बसे थे। उनसे मैं बहुत जल्द घुल-मिल गई, परंतु अंग्रेजी बोलने की बारी आती तो मैं असहज हो जाती। मेरे जीजाजी हमें अपने दफ्तर घुमाने ले गए। वहां ज्यादातर लोग अंग्रेजी में ही बात कर रहे थे। मैं भी उन लोगों को अंग्रेजी में जवाब दे रही थी परंतु अंदर ही अंदर मेरे पसीने छूट रहे थे। तभी किसी ने मुझसे पूछा, "आप किस शहर से आई हो?" मैंने तपाक से जवाब दिया, "हम लोग जमशेदपुर से हैं।" उनका हिंदी में बात करना मेरे कानों में मिश्री घोल रहा था। मैं बहुत उत्साहित होकर उनके प्रश्नों के उत्तर दे रही थी। ऐसा लग रहा था मानो हम एक-दूसरे को वर्षों से जानते हों। हिंदी के कारण ही मैं परदेस में एक अनजान व्यक्ति से इतनी आसानी से जुड़ पाई।


वैसे हिंदी पर मेरी अच्छी पकड़ थी; निबंध प्रतियोगिता, वाद-विवाद आदि प्रतियोगिताओं में मेरा भी प्रयास सराहनीय रहा है। परंतु अंग्रेजी में मंच साझा नहीं करने का मलाल हमेशा रहता था।


आज इतने वर्षों के बाद बच्चों के कारण मैं फिर से अंग्रेजी में भाषण देने की तैयारी कर रही थी। मैं जी-जान से तैयारी में जुटी थी। मुझे अपने बच्चों की कसौटी पर खरा उतरना था। बाहर वाले चाहे कितनी भी तारीफ कर लें जब खुद के घर में एक विशेष दर्जा मिलता है तो लगता है कि हम सफल हो पाए।


आखिरकार वह दिन आ ही गया। निर्धारित समय पर हम अपने बच्चों के विद्यालय वार्षिक समारोह का हिस्सा बनने पहुंच गए। दीप प्रज्वलित कर स्वागत गान के साथ विशेष अतिथियों का स्वागत किया गया। कुछ रंगारंग कार्यक्रमों के पश्चात पुरस्कार वितरण की बारी आई। वह पल आ ही गया जिसका मुझे बेसब्री से इंतजार था। मेरी बेटी को पुरस्कार लेने के लिए मंच पर बुलाया गया। पुरस्कार लेते समय उसका खिला चेहरा देख मेरी आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े। मैं भावविभोर होकर उस पल को अपनी यादों की तिजोरी में कैद कर रही थी। अचानक मेरे नाम की घोषणा के साथ ही मेरी तंद्रा भंग हुई। मुझे मंच पर अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए आमंत्रित किया गया। इतने वर्षों के बाद मंच पर जाने में मुझे घबराहट महसूस हो रही थी। सामने हजारों की भीड़ थी। जाड़े में भी पसीने की बूंदे मेरे माथे पर छलक आई थीं। बोलने के लिए ज्योंही मैंने अपना मुंह खोला, हिंदी में बोल फूट पड़े। इसके पश्चात मैं धाराप्रवाह हिंदी बोलती गई। मेरे भाषण के समाप्त होने पर पूरा ऑडिटोरियम तालियों से गूंज रहा था। मैंने नम आँखों से मन ही मन सबको धन्यवाद दिया।


मंच से उतरने के पश्चात विद्यालय के उप-प्रधानाचार्य पी.टी.राव सर ने मेरे पास आकर मुझे मातृभाषा हिंदी में भाषण देने के लिए बहुत सराहा। वे खुद एक नॉन हिंदी भाषी शिक्षक थे। उनके सादर मुख से हिंदी में भाषण देने की तारीफ सुनकर मैं धन्य हो गई। आई तो थी अपनी बेटी के पुरस्कार का हिस्सा बनने, परंतु उससे बड़ा पुरस्कार आज मैंने पा लिया था। इतने वर्षों से अंग्रेजी में भाषण देने का मलाल मेरे ख़ुशी के आंसुओं से धुल गया।


 
 
 

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